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श्री रघुवर जी कीआरती बाल वनिता महिला आश्रम आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||टेक||दशरथ तनय कौशल्या नन्दन|सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन||आरती कीजै०||अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन|मर्यादा पुरुषोतम वर की||आरती कीजै०||निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि|सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि||आरती कीजै०||हरण शोक-भय दायक नव निधि|माया रहित दिव्य नर वर की||आरती कीजै०||जानकी पति सुर अधिपति जगपति|अखिल लोक पालक त्रिलोक गति||आरती कीजै०||विश्‍व वन्द्य अवन्ह अमित गति|एक मात्र गति सचराचर की||आरती कीजै०||शरणागत वत्सल व्रतधारी|भक्त कल्प तरुवर असुरारी||आरती कीजै०||नाम लेत जग पावनकारी|वानर सखा दीन दुख हर की||आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

ऊपरी बाधाएं योग और उपायBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं। यहां ऊपरी बाधाओं के कुछ ऐसे ही प्रमुख योगों तथा उनसे बचाव के उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है।लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो जातक को प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है।चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो, तो भूत से पीड़ा होती है।शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है।लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है।यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है।उक्त योगों के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने लगता है।*ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।* संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा........न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं।दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी।शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतु दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां......का उच्चारण करते हुए घी की आहुतियां दें।शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च, दालचीनी तथा जायफल की हवि देकर दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित प्रयोग तथा हवन कराएं।*कुछ अन्य उपाय* महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत्‌ अनुष्ठान कराएं। जप के पश्चात्‌ हवन अवश्य कराएं।महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं।

आरती श्री विष्णु भगवान जी कीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका|सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका||ॐ जय जगदीश हरे||मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी|तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी|पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी||ॐ जय जगदीश हरे||तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता|मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता||ॐ जय जगदीश हरे||तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति|किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती||ॐ जय जगदीश हरे||दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे|अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा (मैं) तेरे||ॐ जय जगदीश हरे||विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा|श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा||ॐ जय जगदीश हरे||ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे|भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे||ॐ जय जगदीश हरे||

ॐ जय लक्ष्मीरमणा,By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||टेक||रत्नजटित सिंहासन, अद्भुत छवि राजै|नारद करत निराजन घंटा ध्वनी बाजै||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी....प्रकट भयें कलिकारण, द्विज को दरस दियो|बूढों ब्राह्मण बनके, कंचन महल कियो||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी|च्रंदचूड़ एक राजा, तिनकी बिपति हरी||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दिन्हीं|सो फल भोग्यो प्रभूजी, फेर अस्तुति किन्हीं||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रुप धरयो|श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....ग्वाल बाल संग राजा, वन में भक्ति करी|मनवांचित फल दिन्हों, दीन दयालु हरि||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल मेवा|धूप दीप तुलसी से, राजी सत्य देवा||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे|तन-मन-सुख-संपत्ति, मन-वांछित फल पावै||ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी.....ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा|सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा||

आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||टेक||by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबदशरथ तनय कौशल्या नन्दन|सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन||आरती कीजै०||अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन|मर्यादा पुरुषोतम वर की||आरती कीजै०||निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि|सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि||आरती कीजै०||हरण शोक-भय दायक नव निधि|माया रहित दिव्य नर वर की||आरती कीजै०||जानकी पति सुर अधिपति जगपति|अखिल लोक पालक त्रिलोक गति||आरती कीजै०||विश्‍व वन्द्य अवन्ह अमित गति|एक मात्र गति सचराचर की||आरती कीजै०||शरणागत वत्सल व्रतधारी|भक्त कल्प तरुवर असुरारी||आरती कीजै०||नाम लेत जग पावनकारी|वानर सखा दीन दुख हर की||आरती कीजै श्री रघुवर जी की|सत् चित आनन्द शिव सुन्दर की||

     शिव जी की आरतीॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||ॐ जय शिव ओंकारा...एकानन चतुरानन पंचानन राजे|हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे||ॐ जय शिव ओंकारा......दो भुज चार चतुर्भज दस भुज अति सोहे|तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहे||ॐ जय शिव ओंकारा......अक्षमाला, वनमाला, मुण्डमाला धारी|चंदन मृदमद सोहे, भोले त्रिपुरारी||ॐ जय शिव ओंकारा......श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे|सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे|ॐ जय शिव ओंकारा......कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूल धरता|सुखकर्ता, दुखः हर्ता, जगपालन करता||ॐ जय शिव ओंकारा......ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका|प्रणवाक्षर के मध्ये तीनो ही एका||ॐ जय शिव ओंकारा......By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबत्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे|कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे||ॐ जय शिव ओंकारा.....ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा|ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा||ॐ जय शिव ओंकारा...

श्री राम चन्द्र जी की आरतीश्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्|नव कंज लोचन, कंज-मुख कर-कंज पद-कंजारुणम्||कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्|पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नोमि जनक सुतावरम्||भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्|रघुनन्द आनन्दकन्द कौशलचन्द दशरथ-नंदनम||सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्|आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्||इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम्।मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो|करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो||By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबएहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषीं अली|तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली||